आधुनिक भारत के निर्माता : डॉ. भीमराव अंबेडकर
भारतवासी इस वर्ष अपनी आजादी का पचहत्तरवां वर्षगांठ अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं। स्वतंत्रता के पश्चात भारत का आशातीत विकास हुआ है। आधुनिक भारत के निर्माण में भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय संविधान की संकल्पना में स्वतंत्रता के पूर्व भारतीय समाज की स्थिति, वर्तमान स्थिति एवं भावी पीढ़ी के अनुरूप सामंजस्य स्थापित करते हुए एक नवीन और बेहतर समाज की कल्पना किया गया था। उसी संकल्पना के अनुरूप भारतीय संविधान का निर्माण किया है जिसमें नागरिकों के सर्वांगीण विकास हेतु विश्व के अनेक देशों के संविधानों के अनेकों बेहतर प्रावधानों को सम्मिलित किया गया। संविधान में दिए गए प्रावधानों के अनुरूप नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का पालन करते हुए कार्य कर रहे हैं। आज भारत की पहचान विश्व के प्रमुख शक्तियों रूप में है इसका कारण आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान है।

जब स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण करने के लिए प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को मनोनीत किया तब उन्होंने प्रारूप समिति के सदस्यों के साथ मिलकर एक नवीन भारत की कल्पना किया था। प्रारूप समिति के सदस्यों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाने पर भी बाबा साहब ने अकेले भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करते हुए विश्व का सबसे बड़ा संविधान का निर्माण कर सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान कर एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया। आधुनिक भारत के निर्माण में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
नागरिक अधिकारों का प्रावधान:
बाबा साहब अंबेडकर ने विश्व के अनेक देशों के संविधानों का अध्ययन करते हुए भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों एवं कर्तव्यों का समावेश किया जिससे मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता मिल रही है। मौलिक अधिकारों की व्यवस्था से शिक्षा, समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, अपनी भाषा, संस्कृति, संस्कार, लिपि एवं मान्यताओं को संरक्षित करने अधिकारों प्राप्त हुआ है जो अलग-अलग भाषा, संप्रदाय, धर्म, रीति-रिवाज और मान्यताओं में बंटे हुए भारतीय समाज के संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है। भारतीय संविधान में छह मौलिक अधिकारों की व्यवस्था ने स्वतंत्रता के पूर्व पशुवत जीवन जीने वालों करोड़ों नागरिकों को शिक्षा, समानता, धार्मिक स्वतंत्रता सहित विचार एवं अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान कर एक नया जीवन प्रदान किया है। भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है परंतु वास्तविक जीवन में विभिन्न धर्मों, वर्ग, मान्यताओं एवं संप्रदायों के बीच में अलगाव का वातावरण दृष्टिगोचर होता है जिसे डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने अपने जीवन काल में स्वयं महसूस किया था इसलिए किसी भी धर्म को भारत का राज धर्म न बनाते हुए सभी नागरिक अपने-अपने धर्मों का पालन एक दायरे में रहकर करने के लिए धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसी का नतीजा है कि आज सभी धर्म,वर्ग, संप्रदाय के अनुयायी अपने-अपने मान्यताओं का पालन करते हुए बेहतर जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
समाजवादी एवं संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य की संकल्पना:
आधुनिक भारत के निर्माण के लिए भारत को समाजवादी राज्य के रूप में स्थापित करने की संकल्पना स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने की थी। भारत में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा भाग किसान और मजदूरों का है। ऐसे में साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों को समन्वित रूप से अपनाते हुए समाजवाद की कल्पना किया गया। समाजवादी राज्य के रूप में एक ऐसे भारत के निर्माण की संकल्पना किया गया था जो अपना शासन स्वतंत्र रूप से संचालित कर सके। भारतीय संविधान में संप्रभुता का उल्लेख करते हुए किसी बाहरी ताकत से शासित न होना भारतीय संविधान की एक बड़ी विशेषता है जिसका प्रभाव वर्तमान समय में स्पष्ट दिखाई देता है। संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न भारत किसी भी समूह अथवा शक्ति से प्रभावित हुए बिना अपना स्वतंत्र विदेश नीति कायम करते हुए सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर विश्व में एक अलग पहचान बनाई है। संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य होने के बाद भी भारत ने कभी भी किसी युद्ध का समर्थन नहीं किया है। अपने पड़ोसियों के द्वारा किए गए आक्रमणों का जवाब भी केवल बचाव के लिए किया है। कभी भी अन्य पड़ोसी देशों पर साम्राज्य विस्तार के नियत से आक्रमण नहीं किया है।
किसान, मजदूरों एवं महिलाओं के लिए अधिकार:
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के निर्माण में कृषकों, मजदूरों एवं महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए संविधान में "समान कार्य- समान वेतन" का प्रावधान किया है जिससे महिला एवं पुरुषों में किसी भी प्रकार का भेदभाव उत्पन्न न हो। स्वतंत्रता से पूर्व भारत में मजदूरों के 12 और 16 घंटों के कार्यों को कम करते हुए 8 घंटे प्रति दिवस कार्य करने का प्रावधान किया। साथ ही महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान बाबा साहब अंबेडकर की देन है। यह प्रावधान उस समय ब्रिटिश शासनकाल में किया गया था जब महिलाओं को पुरुषों की समान न तो शिक्षा का अधिकार था न कार्य करते हुए समान वेतन पाने का और नहीं सामाजिक जीवन में बराबरी का अधिकार प्राप्त था। इस तरह समान अधिकार प्राप्त महिलाएं सशक्त एवं आत्मनिर्भर होकर पुरुषों के कंधा से कंधा मिलाकर कार्य करने का अधिकार भारतीय संविधान में बाबा साहब ने प्रदान किया है।
बहुद्देशीय नदी परियोजनाओं के सूत्रधार:
आजादी के पूर्व आने वाले भयावह बाढ़ एवं सूखे की त्रासदी को रोकने के लिए वायसराय के मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री रहते हुए जल नीति का निर्माण 1945 में किया। किसानों को वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर रहना पड़ता था। बाबा साहब ने सिंचित कृषि के लिए प्रयास करते हुए अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण किया जिससे किसानों को सिंचाई की सुविधाओं के साथ बिजली सहित अन्य सुविधाएं भी प्राप्त हुआ और उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ। दामोदर घाटी परियोजना, हीराकुंड जलाशय परियोजना, सोन नदी परियोजना आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं जो बाबा साहब के योजनाओं एवं नीतियों से प्रेरित थे।
मतदान का अधिकार एवं स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था:
स्वतंत्र भारत में समस्त नागरिकों को मतदान का अधिकार भारतीय संविधान में प्रदान किया गया है जिसका उपयोग करते हुए जनता अपना प्रतिनिधि स्वयं चुनते हैं। स्वतंत्रता के पूर्व भारतीय जनता को राजशाही व्यवस्था के अनुसार राजा के द्वारा दिए गए अधिकारों पर आश्रित रहना पड़ता था। राजशाही के प्रावधानों के अनुरूप राजा को ईश्वर का स्वरूप मानने के लिए बाध्य किया जाता था और अनेेकों अमानवीय कृत्यों एवं अत्याचारों से गुजरना पड़ता था। भारतीय संविधान में आम जनता को स्वतंत्र शासन में भागीदारी के लिए प्रतिनिधि चुनने का अधिकार प्रदान किया गयाा है। इस तरह अब राजा का बेटा राजा नहीं होता। जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि जनताा का प्रतिनिधित्व करते हुए शासन में कार्य करती है।
वित्त आयोग के गठन का प्रावधान:
स्वतंत्र भारत में भारतीय जनता का संपूर्ण विकास करने के लिए बाबा साहब अंबेडकर ने वित्त आयोग के गठन का प्रावधान संविधान में किया है जिस के अनुरूप भारत में केंद्र और राज्यों के आर्थिक संबंधों का खाका तैयार हो सका। इसी के आधार पर अलग-अलग राज्यों में आवश्यकता के अनुरूप जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए राज्यों को धन आबंटित किया जाता है जिससे बिजली पानी एवं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों का विकास योजना आयोग द्वारा तैयार मसौदा के अनुरूप हुआ है। सड़क,बिजली, पानी, शिक्षा रोजगार आदि कार्य वित्त आयोग के द्वारा अनुशंसा किए गए प्रावधानों के अनुरूप हो रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना:
देश की वित्तीय स्थिति को स्थिर एवं सशक्त बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1935 में किया गया जो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की शोध ग्रंथ दी प्राब्लम आफ दी रुपी- इट्स ओरिजीन एंड इट्स सोल्यूशन(रुपया का समस्या – इसके मूल और इसके समाधान) पर आधारित था। केंद्रीय बैंक की स्थापना से देशभर के बैंकों का नियमन करने में सहायता मिली है एवं देश की आर्थिक स्थिति के अनुसार मौद्रिक नीति का निर्माण किया जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना से भारत में धन का समान वितरण एवं मौद्रिक नीति का संतुलन स्थापित हो पाया है। इसी के आधार पर स्वतंत्रता के पश्चात देश में सहकारिता आंदोलन का शुरुआत हुआ। बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी इन्हीं बातों का परिणाम था।
अन्य महत्वपूर्ण कार्य:
इस तरह बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने आधुनिक भारत के निर्माण के लिए भारतीय संविधान की में अनेक प्रावधानों की व्यवस्था किया है। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार संपत्ति का अधिकार देना उनकी भविष्य दृष्टा होने का परिचायक है। संसद में भारी विरोध के बाद भी उन्होंने हिंदू कोड बिल को पारित करने का भरपूर प्रयास किया। महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिलाना उनका एक महत्वपूर्ण कार्य है इसके अलावा बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए रोजगार कार्यालय की स्थापना जैसे अनेकों कार्य यथा कर्मचारी राज्य बीमा, ट्रेड यूनियंस को मान्यता, महंगाई भत्ता, हेल्थ इंश्योरेंस, प्रोविडेंट फंड, राष्ट्रीय कल्याण कोष, तकनीकी परीक्षण योजना, सेंट्रल सिंचाई आयोग, सेंट्रल तकनीकी पावर बोर्ड आदि आर्थिक योगदान कार्य बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने किए हैं जिसका लाभ लेते हुए आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक आम नागरिक स्वाभिमान का जीवन जी रहे हैं।

आधुनिक भारत के निर्माण में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का महत्वपूर्ण भूमिका है। एक राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, पत्रकार, नीति निर्माता,समाज सुधारक एवं शिक्षाविद के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किया है। वर्तमान समय में संविधान के प्रावधानों के अनुरूप हमें कार्य करने की आवश्यकता है। कोई जाति, धर्म, संप्रदाय अथवा जन्म से छोटा या बड़ा नही होता, सभी समान होते हैं। शिक्षा से व्यक्ति में सभी तरह के गुणों का विकास होता है, वह सही मायने में मनुष्य बनता है।
प्रो. गोवर्धन प्रसाद सूर्यवंशी संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय सरगुजा (अंबिकापुर)